विश्व आदिवासी दिवस

 

विश्व आदिवासी दिवस

विश्व आदिवासी दिवस प्रतिवर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन विश्वभर में आदिवासी समुदायों के आदिकाल संस्कृति और सभ्यता को समर्पित है और उनके संरक्षण, सम्मान और विकास को बढ़ावा देने का एक अवसर है।

जो समृद्धता और संस्कृति के साथी हैं। आदिवासी समुदायों की संरचना और जीवनशैली प्रकृति के साथ संगत है और वे प्रकृति के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

विश्व आदिवासी दिवस का इतिहास:

इस दिन संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) United Nations Organization ने आदिवासियों के लिए एक कार्यदल गठित किया था जिसकी बैठक 9 अगस्त 1982 को हुई। और इस दिन से विश्व आदिवासी दिवस हर साल 9 अगस्त को मनाया जाने लगा। इस दिवस का मुख्य उद्देश्य विश्वभर में आदिवासी जनजातियों के अधिकारों और मान्यताओं को प्रोत्साहित करना है।

 विश्व आदिवासी दिवस के अंतर्गत कई मुद्दों पर चर्चा होती है, जैसे कि जमीनी हक, शिक्षा, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक संरक्षण और अपाराधिकता। इस दिन को मनाने से उचित समझा जाता है कि हम आदिवासी समुदायों के योगदान को मान्यता और सम्मान देने के लिए संकल्पबद्ध हैं।

 विश्व आदिवासी दिवस संदेश:

विश्व आदिवासी दिवस महत्वपूर्ण संदेश देता है कि हमें आदिवासी समुदायों के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। इस दिन को मनाकर हम उनकी संस्कृति, जीवनशैली और विशेषताओं को समझने और मान्यता देने का संकेत देते हैं। हमें आदिवासी समुदायों के साथ सहयोग करना चाहिए और उनकी समस्याओं को हल करने के लिए संघर्ष करना चाहिए।

आदिवासी समुदायों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करना और सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास की दिशा में सहायता प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही, उनके राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना चाहिए ताकि उनकी आवाज समाज के सभी स्तरों तक पहुंच सके।

विश्व आदिवासी दिवस हमें यह सिखाता है कि हमें सभी भाषाओं, संस्कृतियों और समुदायों के बीच सामरस्य और एकता की स्थापना करनी चाहिए। इस दिन का उत्सव हमें यह याद दिलाता है कि हमारा संसार विविधता में समृद्ध है और हमें इसे मान्यता देना चाहिए। हमें भूमि, वन और जल संरक्षण के महत्व को समझना चाहिए और उनकी संरक्षा के लिए कठिनाइयों का सामना करना चाहिए।

इस प्रकार, विश्व आदिवासी दिवस हमें आदिवासी समुदायों की महत्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देने का अवसर प्रदान करता है। हमें उनके अधिकारों का सम्मान करना और समाज में समानता और न्याय की स्थापना करने के लिए कार्य करना चाहिए। यह एक सामरिक और समरसिता से भरी दुनिया की ओर हमारा प्रयास होना चाहिए।

आदिवासी किसे कहाँ जाता हैं:

 आदिवासी (Adivasi) शब्द संस्कृत शब्द "आदि" (adi) और "वास" (vasa) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है "आदिकाल से बास करने वाले" या "मूल निवासी". आदिवासी शब्द भारतीय उपमहाद्वीप (Indian subcontinent) के अनुसूचित जनजातियों को संदर्भित करने के लिए प्रयुक्त होता है।

 आदिवासी शब्द का उपयोग भारत में अनेक जनजातियों को सम्मिलित करने के लिए किया जाता है, जो उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान, भाषा, जीवनशैली, और अन्य चरित्रिस्टिक्स के आधार पर विभाजित होती हैं। ये जनजातियाँ अकेले या समूहों में भारत के विभिन्न भूभागों में बास करती हैं। वे आमतौर पर निर्दोष होते हैं और उन्होंने ब्रिटिश राज के आगमन से पहले अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने की कोशिश की है।

 भारत में आदिवासी जनजातियों की आंखें संविधान में उन्हें विशेष अधिकारों का दावा करने के लिए उपयोग की जाती हैं। उन्हें भारतीय संविधान द्वारा दिए गए अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) की श्रेणी में शामिल किया गया है। इसके अलावा, विभिन्न राज्यों में आदिवासी जनजातियों के लिए विशेष कानूनी और प्रशासनिक व्यवस्थाएं हैं जो उनके हकों और सुरक्षा की गारंटी प्रदान करती हैं।

 विश्व आदिवासी दिवस

आदिवासी लोगों का इतिहास:

आदिवासी लोगों का इतिहास बहुत पुराना है और उनका महत्वपूर्ण अंश विश्व के इतिहास में है। आदिवासी शब्द संस्कृत शब्द "आदिवास" से निकला है, जिसका अर्थ होता है "जंगली वासी" या "मूल निवासी" आदिवासी लोग प्राचीन समय से ही भारतीय उपमहाद्वीप में निवास कर रहे हैं और उनका विस्तार भारत के विभिन्न हिस्सों में होता आया है।

 आदिवासी लोगों के इतिहास का अधिकांश हिस्सा प्रागैतिहासिक काल में आता है, जब लोग अवस्थाओं के अनुसार आदिवासी जीवन जीते थे। उनका जीवन जंगलों, पहाड़ों, नदियों और सागरों के साथ गहरी जुड़ाव रखता है। वे शिकार और संग्रह करने, कृषि और गोपनीय रूप से वन्य फल-फूल उगाने, धार्मिक और सामाजिक आयोजनों के साथ अपने समुदाय की जीवनशैली को जीते हैं।

 समय के साथ, आदिवासी लोगों के साथ उनके संपर्क में आने वाले बाहरी वाम्पंथी और साम्राज्यों के प्रभाव ने उनके जीवन पर प्रभाव डाला। विभिन्न आदिवासी समुदायों के बीच स्थानीय राजनीतिक संगठन, सामुदायिक संगठन, लड़ाईयों और समझौतों के माध्यम से समझौते किए गए और संघर्ष चलाए गए।

 ब्रिटिश शासन के समय में, आदिवासी लोगों के साथ स्वतंत्रता संग्राम किए गए और अपने अधिकारों की मांग की। आदिवासी नेताओं जैसे बीरसाइंया भूपेंद्र हूड्डा, सिड्धू कानू मुंडा, जोय ओराम और बिरसा मुंडा ने अपने समुदायों को आदिवासी हक्क की लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया।

 हालांकि, आदिवासी समुदायों को अभी भी कई चुनौतियों का ससामना करना पड़ रहा है। उन्हें भूमि के मामले, आराजकता, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, रोजगार, और सामाजिक समानता के मुद्दों पर अभी भी काम करना होगा। सरकार और समाज को आदिवासी समुदायों के सशक्तिकरण और समानता को प्रोत्साहित करने के लिए सहयोग करने की जरूरत है।

 भारत में ज्यादातर आदिवासी क्षेत्र:

 भारत में ज्यादातर आदिवासी क्षेत्र उत्तर पूर्वी राज्यों और मध्य भारत के नगर विकासशील राज्यों में पाए जाते हैं। यहां कुछ प्रमुख आदिवासी क्षेत्रों का उल्लेख किया जा सकता है:

 1.छत्तीसगढ़: छत्तीसगढ़ राज्य भारत के मध्य में स्थित है और आदिवासी जनजातियों का मुख्य क्षेत्र है। बास्तर, दंतेवाड़ा, कोंडागांव, रायपुर और जशपुर जिले इस क्षेत्र के प्रमुख हैं।

 2.झारखंड: झारखंड राज्य उत्तर पूर्वी भारत में स्थित है और भील, मुंडा, संथाल, औराओं और पहाड़िया आदिवासी समुदायों का निवासस्थान है।

 3.ओडिशा: ओडिशा राज्य उत्तर पूर्वी भारत में स्थित है और संथाल, भूईया, गोंड, खोंड, मुंडा, पहाड़िया और देसिया आदिवासी समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है।

 4.मध्य प्रदेश: मध्य प्रदेश भारत के मध्य में स्थित है और गोंड, भील, भूईया, साहरिया, बागड़ी, भीलाल, औराओं और कोल आदिवासी समुदायों के लिए मुख्य क्षेत्र है।

 5.गुजरात: गुजरात राज्य पश्चिमी भारत में स्थित है और रबारी, बवा, भरवाड़, खांभा, वाघरी, आदिवासी समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है।

 यहां उल्लिखित केवल कुछ प्रमुख आदिवासी क्षेत्र हैं और भारत में अन्य भी आदिवासी समुदायों के क्षेत्र मौजूद हैं। ये क्षेत्र अपनी विविधता, संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध हैं।

आदिवासी समुदायों की परम्पराएँ:

आदिवासी समुदायों की परम्पराएं विशेषतः उनकी संस्कृति, धार्मिक आदान-प्रदान, समाज संगठन और वाणिज्यिक गतिविधियों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण हैं। ये परंपराएं उनकी विशेषताओं, अनुशासन, सामाजिक समरसता और जीवनशैली को प्रभावित करती हैं। 

 1.संस्कृति: 

 आदिवासी समुदायों की संस्कृति उनकी पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन समुदायों की संस्कृति में भूमि, जंगल, नदी और प्राकृतिक तत्वों के प्रति गहरा संबंध होता है। इन्हें अपनी भाषा, गान, नृत्य, कथाएं, और शिल्पकला के माध्यम से अद्यात्म, प्रकृति और समाज के साथ जोड़ा जाता है।

 2.धार्मिक आदान-प्रदान: 

           आदिवासी समुदायों के धार्मिक आदान-प्रदान का मूल्य अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये समुदाय अपने अंदर अनेक देवी-देवताओं, भूत-प्रेतों, वन-देवताओं और शक्तियों की पूजा करते हैं। वे अपने आदिवासी धर्म के माध्यम से अपने संघ, शासन और समाज के नियमों का पालन करते हैं।

 3.समाज संगठन:

 आदिवासी समुदायों में समाजिक संगठन गहरी प्रभावशाली होती है। इन समुदायों में सामाजिक संघ, पंचायत, गांवों की समितियां, और मण्डलों के माध्यम से न्याय, शासन और समाजिक मुद्दों पर निर्णय लिए जाते हैं। समाज की महत्वपूर्ण उपस्थिति और सदस्यों के मध्य विश्वास, सहयोग और एकजुटता इन संगठनों के माध्यम से प्रदर्शित होती है।

 4.वाणिज्यिक गतिविधियाँ: 

 कुछ आदिवासी समुदाय वाणिज्यिक गतिविधियों में भी निपुणता प्रदर्शित करते हैं। ये गतिविधियाँ मुख्य रूप से वन्य उत्पादों, खेती, चारा पालन, बाँस की उपज और लकड़ी के उत्पादों के निर्माण और व्यापार पर केंद्रित होती हैं।

 इन परंपराओं के माध्यम से आदिवासी समुदाय अपनी अद्यात्म, सामाजिक संगठन, और जीवनशैली को संरक्षित रखते हैं और अपने संघर्षों, आराम और समृद्धि के अनुभवों को पीढ़ियों के साथ साझा करते हैं। ये परंपराएं उनकी सामरिक, साहित्यिक और कला संस्कृति को भी महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं। इन परंपराओं के माध्यम से आदिवासी समुदाय अपने संघर्षों, आराम और समृद्धि के अनुभवों को पीढ़ियों के साथ साझा करते हैं। ये परंपराएं उनकी सामरिक, साहित्यिक और कला संस्कृति को भी महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं।

 

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